आदिवासी परम्परा में अध्यात्मिक अवधारना

– डॉ0 नारायण उराँव ‘‘सैन्दा’’ साधरणतया, लोग कहा करते हैं – आदिवासियों का कोर्इ धर्म नहीं है। इनका कोर्इ आध्यात्मिक चिंतन नहीं है। इनका विश्वास एवं धर्म अपरिभाषित है। ये पेड़-पोधों की पूजा करते हैं …… आदि, आदि। इस तरह के प्रश्नों एवं शंकाओं को प्रोत्साहित करने वालों से अगर पूछा जाय – क्या, वे अपने विश्वास, धर्म आदि के बारे में जानते और समझते हैं ? यदि इस तरह के प्रश्न करने वाले सचमुच अपने … Read entire article »
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बेनामी आदिवासी आस्था-धर्म की व्यथा

– डॉ0 नारायण उराँव ‘सैन्दा’ दिनांक 06.01.2011 को एक हिन्दी दैनिक में खबर छपी – ‘‘आदिवासी ही देश के असली नागरिक हैं।’’ खबर पढ़कर मन को सांतावना मिला कि – कोर्इ तो है जो भारत के आदिवासियों की सुधि लेता है। आज भी कुछ लोग हैं जो आदिवासियों के पहचान के बारे में अपनी उर्जा खरच रहे हैं। समाचार में कहा गया है कि माननीय सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस मार्कण्डेय काटजू एवं जस्टिस ज्ञान सुधा मिश्रा … Read entire article »
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आदिवासी परम्परा में जन स्वास्थ्य की अवधारणा

– डॉ0 नारायण उराँव ‘‘सैन्दा’’ साधारणतया राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की स्वास्थ्य परिचर्चाओं में जनजातीय स्वास्थ्य एक महत्वपूर्ण विषय हुआ करता है। इन परिचर्चाओं में – 1. स्वच्छ पेयजल 2. कुपोषण 3. सुरक्षित प्रसव 4. नशापान 5. गरीबी 6. अशिक्षा आदि विषय मुख्य रूप से हुआ करते हैं। क्या, ये विषय आदिवासी समाज में चिकित्सा विज्ञान के विकास के बाद आया ? क्या, ये प्रश्न पूर्व के आदिवासी समाज में नहीं था ? ये तमाम प्रश्न मानव … Read entire article »
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