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तोलोंग सिकि लिपि के विकास की गाथा (भाग 1)

तोलोङ सिकि (लिपि), भारतीय आदिवासी आन्दोलन एवं झारखण्ड का छात्र आन्दोलन की देन है। यह लिपि आदिवासी भाषाओं की लिपि के रूप में विकसित हुर्इ है। इस लिपि को कुँड़ुख (उराँव) समाज ने कुँड़ुख़ भाषा की लिपि के रूप में स्वीकार किया है तथा झारखण्ड सरकार, कार्मिक प्राासनिक सुधार एवं राजभाषा विभाग के पत्रांक 129 दिनांक 18.09.2003 द्वारा कुँड़ुख (उराँव) भाषा की लिपि के रूप में संविधान की आठवीं अनुसूची में दृाामिल किये जाने हेतु … Read entire article »
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आदिवासी परम्परा में अध्यात्मिक अवधारना

– डॉ0 नारायण उराँव ‘‘सैन्दा’’ साधरणतया, लोग कहा करते हैं – आदिवासियों का कोर्इ धर्म नहीं है। इनका कोर्इ आध्यात्मिक चिंतन नहीं है। इनका विश्वास एवं धर्म अपरिभाषित है। ये पेड़-पोधों की पूजा करते हैं …… आदि, आदि। इस तरह के प्रश्नों एवं शंकाओं को प्रोत्साहित करने वालों से अगर पूछा जाय – क्या, वे अपने विश्वास, धर्म आदि के बारे में जानते और समझते हैं ? यदि इस तरह के प्रश्न करने वाले सचमुच अपने … Read entire article »
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बेनामी आदिवासी आस्था-धर्म की व्यथा

– डॉ0 नारायण उराँव ‘सैन्दा’ दिनांक 06.01.2011 को एक हिन्दी दैनिक में खबर छपी – ‘‘आदिवासी ही देश के असली नागरिक हैं।’’ खबर पढ़कर मन को सांतावना मिला कि – कोर्इ तो है जो भारत के आदिवासियों की सुधि लेता है। आज भी कुछ लोग हैं जो आदिवासियों के पहचान के बारे में अपनी उर्जा खरच रहे हैं। समाचार में कहा गया है कि माननीय सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस मार्कण्डेय काटजू एवं जस्टिस ज्ञान सुधा मिश्रा … Read entire article »
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